बुधवार, 6 जुलाई 2022

"अध्यात्म के लिए प्रथम योग्यता "

 नमस्ते,

व्यक्ति अध्यात्म आरम्भ करता है तो सर्वप्रथम अध्यात्म के गुण, साधक के गुण अपना ने होते है l ये गुण साधक को योग्यता प्रदान करता हैं l ये गुण अपना के साधक गुरु से ज्ञान अर्जन कर सकता हैं, ज्ञान के अंतिम चरण तक पहुंच सकता हैंl


अध्यात्म में ज्ञानमार्ग के आधार पर साधक के  गुण हैं- मुमुक्षता, वैराग्य, समर्पण, श्रद्धा, बुद्धि की प्रखरता, ग्रहणमुद्रा, उपरति, षड़सम्पत्ति , विवेक, ध्यान... आदि कई गुण साधक के लिए बताये गये हैं l इसके बाद आत्मानुशंधान प्रारम्भ होता हैं l गुणों को बढ़ाने के लिए जीवन शैली बदलनी होंगी l


 साधक के लिए समर्पण ,विनम्रभाव ,और बुद्धि का प्रखर होना और अहंभाव का ना होना गुरु को ज्ञान प्रदान करने में अति सहायक हैं | इसमें साधक की प्रगति अति तेज होती हैं | 


ज्ञानमार्ग की साधना श्रवण, मनन, और निदिध्यासन हैं जो अपरोक्ष अनुभव और तर्क पे आधारित हैं, जो गुरु से शुरू होती हैं l 


साधक समाज से मिले मान्यतायें और मतारोपण को ध्यान न देकर गुरु के वचन का ग्रहणमुद्रा द्वारा अमृत पान करे l जो साधक पूर्व तैयारी से आता हैं उसे गुरु तुरंत ज्ञान देता हैं l कभी कभी साधक में योग्यता दिखाई देती हैं परन्तु साधक तैयार नहीं होता हैं, तो भी गुरु उसे मार्ग पर नहीं चलाता हैं l ब साधक ज्ञान के लिए परिपकता होती हैं तो ज्ञान प्रदान किया जाता हैं l


साधक को मार्ग से हटाने में भी गुरु कृपा ही हैं l गुरु का समय और साधक का समय नष्ट नहीं होगा l गुरु कड़वे वचन बोले वो भी कृपा ही हैं l उसमे भी साधक की भलाई ही हैं l गुरु का कोई स्वार्थ नहीं सिर्फ करुणा ही हैं l जो  ज्ञान पिपासु होता हैं वो तो गुरु और ज्ञान मिलते ही अपने कल्याण में लग जाता हैं l


जो साधक गुरु के नजर के सामने रहना चाहता हैं ये अहमभाव हैं l जो ज्ञान लेके मौन में साधना में लग जाता हैं गुरु का ध्यान उस साधक की तरफ खींच जाता हैं l 


हर मनुष्य में साधक के गुण की संभावना होती हैं, पर वो अपने समय से प्रकट होती हैं, क्योंकि अस्तित्व संभावनाओं का सागर हैं, पर कब प्रकट होगा वो कहा नहीं जाता हैं l ज़ब तक साधक तैयार नहीं होता तब तक गुरु धीरज करता हैं l इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में होगा l


सभी जीवो का विकासक्रम हो रहा हैं, चाहे साधना करे या नहीं करे परन्तु साधना से विकासक्रम तेज हो जाता हैं l अवस्थाके परिवर्तन के साथ विकासक्रम भी हो रहा हैं l


साधक कई जन्म से साधना करता आ रहा हैं तभी एक जन्म में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करता हैं l जैसे एक आम ज़ब तैयार होके उतरता हैं उससे पहले कितने महीनो की प्रक्रिया से गुजरता हैं, तभी आम पूरा पक्कर तैयार होता हैं l ऐसे ही साधक भी कई जन्मों की साधना की प्रक्रिया करके आता हैं, तभी एक जन्म में पूर्ण ज्ञान में स्थापित होता हैं l 


गुणो को विकसित करना अध्यात्म में बीज डालने के बराबर हैं l उपजाऊ भूमि में बीज पड़ने से बीज अंकुरित होगा और समय आने पर एक पौड़ा एक वृक्ष में परिवर्तित होता हैं l


एक साधक तैयार होता हैं तो उससे कई जीवो का उध्धार होता हैं l जैसे गुरु गोविन्द सिंहजी ने कहा हैं  "एक को लाख से लड़ायेगें तो गुरु गोविन्द सिँह कहलायेंगें l"


जीवन में कुछ प्राप्त करना चाहते हैं या सुख, शांति या आनंद नहीं हैं तो जरूर हमें अपने जीवन की ओर देखना चाहिए l अध्यात्म का द्वार हमेशा खुला  हैं l



धन्यवाद 🙏🙏🙏


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