नमस्ते,
अस्तित्व के दो चेहरे हैं l एक अनुभव और दूसरा अनुभवकर्ता l अनुभव प्रकट हैं और अनुभवकर्ता अप्रकट हैं l अध्यात्म में अनेक मार्ग हैं ज्ञानमार्ग उनमें से एक हैं जो अध्यात्म को समर्पित हैं l विज्ञान ज्ञानमार्ग की एक शाखा हैं जो भौतिक जगत तक सिमित हैं l अध्यात्म और विज्ञान जीवन में अति आवश्यक हैं l जितना जरूरी अध्यात्म हैं उतना जरूरी विज्ञान भी हैं l
अध्यात्म हमें दिशा प्रदान करता हैं विज्ञान हमें गति प्रदान करता हैं l अगर दिशा सही न हो तो गति सही दिशा में काम नहीं करेगी l अगर गति रुक जाये तो जड़ता आ जायेगी l इसलिए अध्यात्म और विज्ञान को संतुलित गति देना आवश्यक हैं l अध्यात्मिक सत्य कभी बदलता नहीं विज्ञान विसत्य हैं जो व्यवहारिक ज्ञान देता हैं, जो मिथ्या हैं माया हैं l अध्यात्म अति विराट और असीम हैं विज्ञान अध्यात्म के आगे अति बोना हैं l जैसे गणित के समीकरण गणित के आगे छोटा हैं वैसे विज्ञान अध्यात्म के आगे लघु हैं l
आज सम्प्रदाय के आड़ में अध्यात्म को अपनी मर्जी मुताबिक चलाया जा रहा हैं, जिसमे पाखंड और आडंबर ही हैं l ये अध्यात्म के नाम पर कुछ और ही चल रहा हैं जिसमे कुछ वास्तविकता नही हैं l विज्ञान में अनेक चीज़ जानी जाती हैं, अनेक चीज़ जानने के बाद भी विज्ञान अज्ञानी ही रहता हैं l ज्ञानीजन एक को जान के कैवल्य को उपलब्ध हो जाते हैं l विज्ञान जो भी संशोधन करता हैं वो अस्तित्व से पंच तत्व (अग्नि, हवा, पानी, वायु,आकाश ) लेके प्रयोग करता हैं, उसमे अपना स्वयं का कुछ भी नहीं हैं l आखिर विज्ञान भी एक ऊर्जा को स्वीकार करता हैं l मनुष्य की जैसे जैसे आवश्यकता शुरू होने लगी वैसे वैसे अविष्कार होना शुरू होने लगा l
तभी कहते हैं "आवश्यकता अविष्कार की जननी हैं "
अगर हम देखे की अध्यात्म बड़ा या विज्ञान बड़ा तो दोनों ही अपने अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं l जीवन को उन्नत बनाने में दोनो की अहम भूमिका हैं l
विज्ञान में भी सत्य बदलता रहता हैं l एक प्रयोग का नियम और सिद्धांत दूसरे प्रयोग में लागू नहीं होता हैं l विज्ञान में कोई सत्यता नहीं हैं और अति सिमित हैं l विज्ञान को अध्यात्म का अंकुश होगा तो विज्ञान व्यवस्थित चलेगा l बिना ब्रेक के विज्ञान विनाशकारी हो सकता हैं l अध्यात्म हमें संतुलन करना सीखाता हैं l अध्यात्म अति गूढ हैं, तटस्थ हैं उसे सम्प्रदाय का स्थान ना दे l जो अध्यात्म को जानना चाहता हैं वो सम्प्रदाय से ऊपर उठना पड़ेगा l अध्यात्म त्रिकालिक हैं, उसका अंत नहीं होता हैं l विज्ञान का अंत हैं l अध्यात्म से जो तत्व उपलब्ध हुआ हैं जो मेरे स्वयं का तत्व हैं उससे समस्त संसार का कल्याण होता हैं l
अध्यात्म शुद्ध चेतना हैं जो उच्च कोटि का विवेक हैं l जो स्वयं का तत्व हैं जो शून्य हैं और वो मैं (अनुभव कर्ता ) पहले से ही हूँ l विज्ञान भौतिक जगत का सुख प्रदान करता हैं जो शरीर तक सिमित हैं, इसलिए विज्ञान एक अच्छे नौकर की तरह सुख सुविधा तो पूरी कर सकता हैं पर आत्मकल्याण नहीं कर सकता हैं l
विज्ञान हमें अपने अधिन करेगा पर अध्यात्म हमें स्वतंत्र करता हैं l अध्यात्म माना स्वयं का रूपांतर l भारत देश में जितना अध्यात्म का विकास हैं उतना पाश्चात्य देश में नहीं हैं l जैसे पाश्चात्य देश में वैज्ञानिक पैदा होते हैं वैसे भारत में ऋषि, मुनि, संत जन्म लेते हैं l विज्ञान का अपना कोई अस्तित्व नहीं हैं l अध्यात्म ठोस हैं कोई मान्यता पर आधारित नहीं हैं l ज़ब भौतिक विज्ञान नहीं था तब भी अध्यात्म तो था l ज़ब भौतिक विज्ञान नहीं रहेगा तो भी अध्यात्म तो रहेगा l
विज्ञान बाहर प्रयोग करता हैं, अध्यात्म स्वयं पर प्रयोग करता हैं l अध्यात्म से जीव का विकासक्रम होता है l जीवन का इतना आधुनिकरण हो गया है की मनुष्य यंत्रवत हो गया है l अपनी संवेदना भावनाओं से भावनाहीन हो रहा है l तभी बोला है "अति सर्वत्र वर्जते l"
विज्ञान निर्माण का सृजक तभी सम्भव हैं ज़ब अध्यात्म का हाथ पकड़ के चलेगा l मनुष्य ने विज्ञान का उपयोग नकारात्मक ज्यादा और सकारात्मक कम् किया हैं मनुष्य ने प्रकृति से अपना संबंध भी तोड़ दिया है जिसके परिणाम स्वरूप दुखी और परेशान है l
विज्ञान कितना भी भौतिक सुख दे पर आंतरिक सुख नहीं दे सकता जो आध्यात्म से मिलेगा l विज्ञान अंतिम सत्य नहीं है अंतिम सत्य अध्यात्म ही है l
धन्यवाद 🙏🙏🙏
🌹🌹🌹👌👌👌
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख 😊🌸👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद🌺🌺
अति सुन्दर,
जवाब देंहटाएंजिस प्रकार मनुष्य जीवन, संपूर्ण जीवन का एक अंश है उसी प्रकार विज्ञान अध्यात्म का एक अंश है, जो मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण है। परंतु सब कुछ नहीं।
बहुत ज्ञानवर्धक
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