नमस्ते,
संसार की दृष्टिकोण से नैतिक और अनैतिक :-
समाज में सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए नैतिकता का प्रयोग अनिवार्य हैं l नैतिकता माना अच्छाई और अनैतिकता माना बुराई l नैतिकता में प्रेम, नम्रता, निःस्वार्थ आदि गुणों का समावेश होता हैं l आज के समय में नैतिकता में भी अशुद्धि आ गईं हैं l मनुष्य सफलता को हासिल करने के लिए नैतिक मूल्यों का भी हनन कर जाता हैं l
नैतिकता के नाम पर पाखंड, दम्भ, स्वार्थ और अहंकार आदि नकारात्मक तत्व का समावेश हो गया हैं l अनैतिकता माना सुसंस्कारो का आभाव हैं l मानवता का मूल्य नैतिकता द्वारा आंकलन किया जा सकता हैं l
ज्ञानमार्ग की दृष्टिकोण से नैतिक और अनैतिक :-
ज्ञानमार्ग में नैतिकता माना अहिंसा और अनैतिकता माना हिंसा l यहाँ नैतिकता और अनैतिकता व्यक्तिनिष्ट और सार्वभौमिक हैं l व्यक्तिनिष्ट माना व्यक्तिगत और सार्वभौमिक माना सर्वमान्य हैं l जैसे एक वस्तु एक व्यक्ति के लिए सुखरूप हैं, वही वस्तु अन्य व्यक्ति के लिए दुखरूप हैं माना पूरी तरह से व्यक्तिनिष्ट हैं l
जीव की जैसी चित्तवृति होती हैं जीव वैसे वैसे नैतिक और अनैतिक का प्रयोग करता हैं l अस्तित्व में नैतिक और अनैतिक दोनों हैं भी और दोनों का आभाव भी हैं l
ज्ञानमार्ग में जो चित्त के नियम के अनुसार हैं वो नैतिक हैं और जो चित्त के अनुसार नहीं हैं वो अनैतिक हैं l अस्तित्व में सब कुछ सुन्दर और पूर्ण हैं क्योंकि चित्तवृति का आभाव हैं, परंतु चित्त खंडन करता हैं और तरह तरह के अनुभव गढ़ता हैं l चित्त के विभाजन की वजह से कहाँ नैतिक और कहाँ अनैतिक का अनुभव होता हैं l नैतिक और अनैतिक भी अवधारणा मात्र हैं, मिथ्या, असत्य हैं l नैतिकता व्यवहार में उत्तरजीविता के लिए, विकासक्रम के लिए, संस्कार और समाज आदि के लिए उपयोगी हैं l
गुरु की दृष्टिकोण से नैतिक और अनैतिक :-
अध्यात्म में गुरु सर्वोपरी हैं और अध्यात्म की शरुआत गुरु से होती हैं l अध्यात्म श्रेष्ठ हैं l नैतिकता की नींव से अध्यात्म का महल खड़ा होता हैं l नैतिक अनैतिक का प्रयोग गुरु शिष्य के कल्याण के लिए देश, काल और पात्र देखकर करता हैं l
गुरु का स्वार्थ शिष्य की प्रगति हैं इसके लिए गुरु झूठ या कड़वे शब्द का भी इस्तेमाल करे तो भी गुरु को कोई लेप नहीं हैं, क्योंकि निःस्वार्थ भाव का कोई कर्मफल नहीं हैं l जो ज्ञान सहित हैं वो नैतिक हैं l गुरु की नैतिकता हमें बहुत कुछ सिखाती हैं l
नैतिकता का मूल्यांकन सच्चे गुरु द्वारा संभव हैं, जिसमे परहित की भावना समाहित हैं l एक बार गुरु करने के बाद बुद्धि के प्रयोग से शंका का समाधान करके श्रद्धा और समर्पण भाव आ गया फिर संदेह करना उचित नहीं हैं l तभी कहाँ हैं
" पानी पीओ छान के
गुरु करो पहचान के '
नैतिक और अनैतिक आत्मरक्षा के लिए भी उपयोगी हैं l गुरु का ज्ञान और आचरण हीं नैतिकता हैं जो आदर्श के रूप में प्रकट होता हैं l गुरु की नैतिकता कौन निर्धारित करता हैं ? गुरु स्वयं अपनी नैतिकता निर्धारित करता हैं, क्योंकि गुरु के हर कर्म में मर्म छुपा हुआ हैं इसलिए गुरु को संकीर्ण मन और बुद्धि से नहीं जाना जा सकता हैं l
अध्यात्म में नैतिक अनैतिक छोड़ देना चाहिए, ज्ञानी जो भी करता हैं नैतिक हीं करता हैं, वहाँ किसी में कोई अपेक्षा नहीं होती हैं l शिष्य की प्रगति के लिए गुरु के लिए कहाँ नैतिक भी अनैतिक हैं और कहाँ अनैतिक भी नैतिक हैं l गुरु को ये स्वार्थ होता हैं की मैं जिस आनंद में हूँ वही आनंद सभी को प्राप्त हो और सांसारिक मनुष्य के स्वार्थ में अपना सुख छिपा होता हैं l
संसार की नैतिकता और अध्यात्म की नैतिकता में फर्क हैं जो हमने आगे देखा l संसार की नैतिकता अध्यात्म में आ गईं तो बुरे परिणाम आ सकते हैं l संसार में नैतिकता थोपी जाती हैं l अध्यात्म में शिष्य गुरु को समर्पित नहीं हैं तो गुरु कोई परामर्श नहीं देता हैं, कोई नैतिकता नहीं थोपी जाती हैं l
नैतिकता मनुष्य जीवन की आवश्यकता हैं l नैतिकता से अंतः करण में और सुन्दरता में ओर निखार आता हैं l स्वार्थ से सिर्फ अपना हित होता हैं परंतु नैतिक विचार से सभी का हित होता हैं l सही और गलत का औचित्य समझ के मानवता को जीवित रखना हैं l
श्री गुरुवे नमः
धन्यवाद 🙏🙏🙏
बहुत अच्छा लेख है, 🙏🙏🌹🌹
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