नमस्ते,
संसार में कई प्रकार के ज्ञान कहे गये हैं उसे ज्ञान नहीं जानकारी, सूचनाएं या छोटी मोटी विद्या कहेंगे l अध्यात्म में ज्ञान का यथार्थ तत्व समाया हुआ हैं l ज्ञान माना अज्ञान का नाश जो अध्यात्मिक ज्ञान से संभव हैं l ज्ञानमार्ग में ज्ञान माना अनुभवो का व्यवस्थिकरण हैं l विभिन्न अनुभवो में संबंध जुड़ना ज्ञान हैं l गलत ज्ञान से गलत संबंध जुड़ता हैं और सही ज्ञान से सही संबंध जुड़ता हैं l
ज्ञान का जीवन में बड़ा महत्व हैं l ज्ञान से शरीर, चित्त की परते, बुद्धि, विचार, कर्म, भावनायें आदि... का शुद्धिकरण होता हैं l शास्त्रो में कहाँ हैं सभी यज्ञ में ज्ञान यज्ञ सर्वश्रेष्ठ हैं, इसमें कोई माया की आवश्यकता नहीं हैं l जीवन की प्रथम प्राथमिकता ज्ञान होना चाहिए l ज्ञान एक प्रकाश हैं और ज्ञान हीं सर्वोपरी हैं l जीवन की गुणवत्ता का आधार ज्ञान हैं l ज्ञान से अनावश्यक कर्म ख़त्म होते हैं, बुद्धि को श्रेष्ठ मनन और चिंतन मिलता हैं, नई जीवन शैली प्रदान होती हैं, पूर्ण स्वतंत्रता, आनंद, शांति, तृप्ति, आध्यात्मिकता में तेज प्रगति आदि... फायदे उपलब्ध होते है l
अज्ञान में हमारे कर्म आवेग से भरे होते हैं l अंधेरे में किये गये कर्म निषेध कर्म हीं होते हैं l इतना कर्म को सही कर लेना हैं की दूसरे को पीड़ा या कष्ट नहीं पहुँचे l स्मृति में जो संस्कार होते हैं वैसे हीं कर्म, विचार , वाणी और भावनाओं का प्रदुर्भाव होता हैं और वो ज्ञान पर आधारित हैं l ज्ञान हीं अनुभव हैं और अनुभव हीं ज्ञान हैं l अनुभव शुद्ध होते हैं और वो मान्यताओं के बगैर होते हैं l
ज्ञान बड़ा सरल और सीधा हैं परंतु अज्ञान उसे जटिल बनाता हैं l प्रकृति हमें सहजता प्रदान करती हैं l ज्ञानी का जीवन आचरणयुक्त होता हैं l ज्ञान गुरुकृपा, गुरुप्रेम, श्रद्धा, समर्पण, जिज्ञासा बुद्धि आदि... गुणो द्वारा अर्जन किया जा सकता हैं l
सांसारिक क्रियाकलापो में व्यक्ति स्वयं को भूल गया हैं और जो इन्द्रियों के माध्यम से दिख रहा हैं उसे हीं वास्तविक समझ रहा हैं परंतु यह सत्य नहीं हैं तभी कहाँ हैं...
" हर चमकती हुई चीज सोना नहीं,
ऐसे धोखे में जीवन को खोना नहीं l"
मनुष्य जीवन अति मूल्यवान हैं इसकी किंमत करनी हैं l ज्ञान तो बहुत हैं पर उस ज्ञान का महत्व हैं जो मेरे अज्ञान का नाश करे l शास्त्रों में ज्ञान हैं परंतु शास्त्र से ज्ञान नहीं होता हैं l ज्ञान जीवंत गुरु से मिलता हैं, जिसे जीवंत श्रद्धा भी कहीं जाती हैं l शास्त्रों से बौद्धिक ज्ञान होता हैं, प्रायोगिक ज्ञान गुरु के माध्यम से संभव हैं l
ज्ञान कहाँ हैं ? तो उत्तर आयेगा ज्ञान चित्त में समाहित हैं l
ज्ञान से कर्महीनता नहीं आती हैं परंतु चेतना के प्रकाश में प्रकाशित कर्म होते हैं l ज्ञान हमारे जीवन का सार हैं, जैसे एक मजबूत बिल्डिंग के लिए मजबूत नींव की आवश्यकता हैं, ऐसे हीं उत्तम आध्यात्मिक जीवन शैली के लिए ज्ञान की महत्ता हैं, जो हमारे जीवन को आलोक करता हैं l इसलिए मनुष्य का तीसरा नेत्र ज्ञान कहाँ गया हैं l
कर्म कांड से, तीर्थंयात्रा से, व्रत से, तप से या मंत्र जाप आदि से कभी ज्ञान नहीं होता हैं l ज्ञानमार्ग में ये दृष्टि मिल जाती हैं की मैं पहले से हीं मुक्त हूँ तो मुक्ति भी किससे लेनी हैं l जो पहले से मुक्त हैं उसकी मुक्ति कैसे संभव हैं ? ये ज्ञान हो जाता हैं l अंत में ज्ञान तो होता नहीं हैं, अज्ञान का नाश होता हैं, जो नेति नेति द्वारा संभव हैं l
थोड़े बहुत ज्ञान से बुद्धि का विकास होता हैं और सम्पूर्ण ज्ञान से विवेक का जन्म होता हैं l
अंततः जीवन की सत्यता ज्ञान से जानी जाती हैं, इसलिए ज्ञान एक रीड की हड्डी के समान हैं l जैसे मछली का जीवन पानी हैं ऐसे हीं ज्ञानी के प्राण ज्ञान में रमे रहते हैं, और बाकी सब निरर्थक हो जाता हैं l
श्री गुरुवे नमः
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